EN اردو
नवाह-ए-वुसअत-ए-मैदाँ में हैरानी बहुत है | शाही शायरी
nawah-e-wusat-e-maidan mein hairani bahut hai

ग़ज़ल

नवाह-ए-वुसअत-ए-मैदाँ में हैरानी बहुत है

मुनीर नियाज़ी

;

नवाह-ए-वुसअत-ए-मैदाँ में हैरानी बहुत है
दिलों में इस ख़राबी से परेशानी बहुत है

कहाँ से है कहाँ तक है ख़बर इस की नहीं मिलती
ये दुनिया अपने फैलाव में अन-जानी बहुत है

बड़ी मुश्किल से ये जाना कि हिज्र-ए-यार में रहना
बहुत मुश्किल है पर आख़िर में आसानी बहुत है

बसर जितनी हुई बेकार ओ बे-मंज़िल ज़माने में
मुझे इस ज़िंदगानी पर पशेमानी बहुत है

निकल आते हैं रस्ते ख़ुद-ब-ख़ुद जब कुछ न होता हो
कि मुश्किल में हमें ख़्वाबों की अर्ज़ानी बहुत है

बहुत रौनक़ है बाज़ारों में गलियों और मोहल्लों में
पर इस रौनक़ से शहर-ए-दिल में वीरानी बहुत है