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नश्शा-हा शादाब-ए-रंग ओ साज़-हा मस्त-ए-तरब | शाही शायरी
nashsha-ha shadab-e-rang o saz-ha mast-e-tarab

ग़ज़ल

नश्शा-हा शादाब-ए-रंग ओ साज़-हा मस्त-ए-तरब

मिर्ज़ा ग़ालिब

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नश्शा-हा शादाब-ए-रंग ओ साज़-हा मस्त-ए-तरब
शीशा-ए-मय सर्व-ए-सब्ज़-ए-जू-ए-बार-ए-नग़्मा है

हम-नशीं मत कह कि बरहम कर न बज़्म-ए-ऐश-ए-दोस्त
वाँ तो मेरे नाले को भी ए'तिबार-ए-नग़्मा है