नशेब-ए-वहम फ़राज़-ए-गुरेज़-पा के लिए
हिसार-ए-ख़ाक है हद पर हर इंतिहा के लिए
वुफ़ूर-ए-नश्शा से रंगत सियाह सी है मिरी
जला हूँ मैं भी अजब चश्म-ए-सुर्मा-सा के लिए
है इर्द-गिर्द घना बन हरे दरख़्तों का
खुला है दर किसी दीवार में हवा के लिए
ज़मीं है मसकन-ए-शर आसमाँ सराब-आलूद
है सारा अहद सज़ा में किसी ख़ता के लिए
असीरी-ए-पस-ए-आईना-ए-बक़ा और तू
निकल के आ भी वहाँ से कभी ख़ुदा के लिए
खड़ा हूँ ज़ेर-ए-फ़लक गुम्बद-ए-सदा में 'मुनीर'
कि जैसे हाथ उठा हो कोई दुआ के लिए
ग़ज़ल
नशेब-ए-वहम फ़राज़-ए-गुरेज़-पा के लिए
मुनीर नियाज़ी