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नशे में हूँ मगर आलूदा-ए-शराब नहीं | शाही शायरी
nashe mein hun magar aaluda-e-sharab nahin

ग़ज़ल

नशे में हूँ मगर आलूदा-ए-शराब नहीं

जगन्नाथ आज़ाद

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नशे में हूँ मगर आलूदा-ए-शराब नहीं
ख़राब हूँ मगर इतना भी मैं ख़राब नहीं

कहीं भी हुस्न का चेहरा तह-ए-नक़ाब नहीं
ये अपना दीदा-ए-दिल है कि बे-हिजाब नहीं

वो इक बशर है कोई नूर-ए-आफ़ताब नहीं
मैं क्या करूँ कि मुझे देखने की ताब नहीं

ये जिस ने मेरी निगाहों में उँगलियाँ भर दीं
तो फिर ये क्या है अगर ये तिरा शबाब नहीं

मिरे सुरूर से अंदाजा-ए-शराब न कर
मिरा सुरूर ब-अंदाजा-ए-शराब नहीं