नक़्श पानी पे बनाया क्यूँ था
जब बनाया तो मिटाया क्यूँ था
गए वक़्तों का है अब रोना क्यूँ
आए वक़्तों को गँवाया क्यूँ था
बैठ जाना था अगर मिस्ल-ए-ग़ुबार
सर पे तूफ़ान उठाया क्यूँ था
मेरी मंज़िल न कहीं थी तो मुझे
दश्त-दर-दश्त फिराया क्यूँ था
वो न हमदम था न दम-साज़ कोई
हाल-ए-दिल उस को सुनाया क्यूँ था
दूर रहना था जब उस को 'मोहसिन'
मेरे नज़दीक वो आया क्यूँ था
ग़ज़ल
नक़्श पानी पे बनाया क्यूँ था
मोहसिन ज़ैदी