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नक़्श पानी पे बनाया क्यूँ था | शाही शायरी
naqsh pani pe banaya kyun tha

ग़ज़ल

नक़्श पानी पे बनाया क्यूँ था

मोहसिन ज़ैदी

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नक़्श पानी पे बनाया क्यूँ था
जब बनाया तो मिटाया क्यूँ था

गए वक़्तों का है अब रोना क्यूँ
आए वक़्तों को गँवाया क्यूँ था

बैठ जाना था अगर मिस्ल-ए-ग़ुबार
सर पे तूफ़ान उठाया क्यूँ था

मेरी मंज़िल न कहीं थी तो मुझे
दश्त-दर-दश्त फिराया क्यूँ था

वो न हमदम था न दम-साज़ कोई
हाल-ए-दिल उस को सुनाया क्यूँ था

दूर रहना था जब उस को 'मोहसिन'
मेरे नज़दीक वो आया क्यूँ था