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नक़्श-ए-नाज़-ए-बुत-ए-तन्नाज़ ब-आग़ोश-ए-रक़ीब | शाही शायरी
naqsh-e-naz-e-but-e-tannaz ba-aghosh-e-raqib

ग़ज़ल

नक़्श-ए-नाज़-ए-बुत-ए-तन्नाज़ ब-आग़ोश-ए-रक़ीब

मिर्ज़ा ग़ालिब

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नक़्श-ए-नाज़-ए-बुत-ए-तन्नाज़ ब-आग़ोश-ए-रक़ीब
पा-ए-ताऊस पए-ख़ामा-ए-मानी माँगे

तू वो बद-ख़ू कि तहय्युर को तमाशा जाने
ग़म वो अफ़्साना कि आशुफ़्ता-बयानी माँगे

वो तप-ए-इश्क़-ए-तमन्ना है कि फिर सूरत-ए-शम्अ
शोला ता-नब्ज़-ए-जिगर रेशा-दवानी माँगे

तिश्ना-ए-ख़ून-ए-तमाशा जो वो पानी माँगे
आईना रुख़्सत-ए-अंदाज़-ए-रवानी माँगे

रंग ने गुल से दम-ए-अर्ज़-ए-परेशानी-ए-बज़्म
बर्ग-ए-गुल रेज़ा-ए-मीना की निशानी माँगे

ज़ुल्फ़ तहरीर-ए-परेशान-ए-तक़ाज़ा है मगर
शाना-साँ मू-ब-ज़बाँ ख़ामा-ए-मानी माँगे

आमद-ए-ख़त से न कर ख़ंदा-ए-शीरीं कि मबाद
चश्म-ए-मोर आईना-ए-दिल निगरानी माँगे

हूँ गिरफ़्तार-ए-कमीं-गाह-ए-तग़ाफ़ुल कि जहाँ
ख़्वाब सय्याद से पर्वाज़-ए-गिरानी माँगे

चश्म पर्वाज़ ओ नफ़स ख़ुफ़्ता मगर ज़ोफ़-ए-उमीद
शहपर-ए-काह पए-मुज़्दा-रिसानी माँगे

वहशत-ए-शोर-ए-तमाशा है कि जूँ निकहत-ए-गुल
नमक-ए-ज़ख़्म-ए-जिगर बाल-फ़िशानी माँगे

गर मिले हज़रत-ए-'बेदिल' का ख़त-ए-लौह-ए-मज़ार
'असद' आईना-ए-पर्वाज़-ए-मआनी माँगे

रंग ने गुल से दम-ए-अर्ज़-ए-परेशानी-ए-बज़्म
बर्ग-ए-गुल रेज़ा-ए-मीना की निशानी माँगे