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नम हैं पलकें तिरी ऐ मौज-ए-हवा रात के साथ | शाही शायरी
nam hain palken teri ai mauj-e-hawa raat ke sath

ग़ज़ल

नम हैं पलकें तिरी ऐ मौज-ए-हवा रात के साथ

परवीन शाकिर

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नम हैं पलकें तिरी ऐ मौज-ए-हवा रात के साथ
क्या तुझे भी कोई याद आता है बरसात के साथ

रूठने और मनाने की हदें मिलने लगीं
चश्म-पोशी के सलीक़े थे शिकायात के साथ

तुझ को खो कर भी रहूँ ख़ल्वत-ए-जाँ में तेरी
जीत पाई है मोहब्बत ने अजब मात के साथ

नींद लाता हुआ फिर आँख को दुख देता हुआ
तजरबे दोनों हैं वाबस्ता तिरे हात के साथ

कभी तन्हाई से महरूम न रक्खा मुझ को
दोस्त हमदर्द रहे कितने मिरी ज़ात के साथ