EN اردو
नाकामी-ए-सद-हसरत-ए-पारीना से डर जाएँ | शाही शायरी
nakaami-e-sad-hasrat-e-parina se Dar jaen

ग़ज़ल

नाकामी-ए-सद-हसरत-ए-पारीना से डर जाएँ

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

;

नाकामी-ए-सद-हसरत-ए-पारीना के डर जाएँ
कुछ रोज़ तो आराम से अपने भी गुज़र जाएँ

ऐ दिल-ज़दगाँ अब के भी इस फ़स्ल-ए-जुनूँ में
फिर बहर-ए-ख़िरद नोक-ए-सिनाँ कितने ही सर जाएँ

ये रिश्ता-ए-जाँ तार-ए-रग-ए-जान की मानिंद
टूटे जो कभी ख़ाक में हम ख़ाक-बसर जाएँ

है हर्फ़-शनासी किसी आईने की मानिंद
पत्थर कोई पड़ जाए तो सब हर्फ़ बिखर जाएँ

पर्वर्दा-ए-शब को है कहाँ जुरअत-ए-इज़हार
डरते हैं कि शानों से कहीं सर न उतर जाएँ

इस क़र्या-ए-यख़-बस्ता में ऐ शोला-सिफ़त आ
जज़्बात न अज्साम की मानिंद ठिठर जाएँ

ये ख़िर्क़ा-ए-दरवेशी हमें रास है 'जावेद'
दस्तार-ओ-क़बा पहन लें हम लोग तो मर जाएँ