EN اردو
नहीं ज़रूर कि तकमील-ए-मुद्दआ' देखें | शाही शायरी
nahin zarur ki takmil-e-muddaa dekhen

ग़ज़ल

नहीं ज़रूर कि तकमील-ए-मुद्दआ' देखें

ख़ालिद शिराज़ी

;

नहीं ज़रूर कि तकमील-ए-मुद्दआ' देखें
मगर है जी में कि ख़ून-ए-जिगर बहा देखें

नुक़ूश-ए-पा जो हुए जा रहे हैं गर्द उन्हें
थकावटों से शराबोर लोग क्या देखें

ये क्या सफ़र है कि सीधे-सपाट रस्ते हैं
कभी तो हम कोई पुर-पेच रास्ता देखें

फ़सील-ए-शब से उधर दे रहा हो कोई सदा
हिसार-ए-ख़्वाब में लेकिन मुझे घिरा देखें

फ़ज़ा में तैर रहे हों हरे-भरे चेहरे
ख़ुद अपने चेहरे को लेकिन बुझा हुआ देखें

सफ़र में शल हुए जाते हूँ धूप के पाँव
उफ़ुक़ की आँख से बहती हुई हिना देखें

तुलू-ए-महर से पहले बस एक पल के लिए
किसी दिए की तरह हम भी झिलमिला देखें

ये दिन भी 'ख़ालिद'-ए-शीराज़ देखने थे हमें
नज़र उठाएँ तो पतझड़ का सिलसिला देखें