नहीं ज़रूर कि तकमील-ए-मुद्दआ' देखें
मगर है जी में कि ख़ून-ए-जिगर बहा देखें
नुक़ूश-ए-पा जो हुए जा रहे हैं गर्द उन्हें
थकावटों से शराबोर लोग क्या देखें
ये क्या सफ़र है कि सीधे-सपाट रस्ते हैं
कभी तो हम कोई पुर-पेच रास्ता देखें
फ़सील-ए-शब से उधर दे रहा हो कोई सदा
हिसार-ए-ख़्वाब में लेकिन मुझे घिरा देखें
फ़ज़ा में तैर रहे हों हरे-भरे चेहरे
ख़ुद अपने चेहरे को लेकिन बुझा हुआ देखें
सफ़र में शल हुए जाते हूँ धूप के पाँव
उफ़ुक़ की आँख से बहती हुई हिना देखें
तुलू-ए-महर से पहले बस एक पल के लिए
किसी दिए की तरह हम भी झिलमिला देखें
ये दिन भी 'ख़ालिद'-ए-शीराज़ देखने थे हमें
नज़र उठाएँ तो पतझड़ का सिलसिला देखें

ग़ज़ल
नहीं ज़रूर कि तकमील-ए-मुद्दआ' देखें
ख़ालिद शिराज़ी