नहीं याँ बैठते जो एक दम तुम
तो क्या डरते हो हम से ऐ सनम तुम
हँसो बोलो मिलो बैठो भला जी
नहीं क्या आशिक़-ओ-माशूक़ हम तुम
जो याँ आया कभी चाहो तो बे-ख़ौफ़
इधर लाया करो अपना क़दम तुम
निहायत सादा-दिल हैं हम तो ऐ जाँ
न समझो हम में हरगिज़ पेच-ओ-ख़म तुम
सुना जब ये 'नज़ीर' उस ने तो हँस कर
कहा ये तो हमें देते हो दम तुम
ग़ज़ल
नहीं याँ बैठते जो एक दम तुम
नज़ीर अकबराबादी