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नहीं मिसाल कोई ऐसा बे-मिसाल बदन | शाही शायरी
nahin misal koi aisa be-misal badan

ग़ज़ल

नहीं मिसाल कोई ऐसा बे-मिसाल बदन

मैराज नक़वी

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नहीं मिसाल कोई ऐसा बे-मिसाल बदन
है ख़ुद जवाब वो अपना है ख़ुद सवाल बदन

महाज़-ए-जंग-ए-वफ़ा पे शिकस्त-ए-इश्क़ के बा'द
पड़ा है दश्त में अब तक वो पाएमाल बदन

तिलिस्म-ए-कुन-फ़यकुन किस ने पढ़ के फूँक दिया
ज़रा सी ख़ाक हुई कैसा बा-कमाल बदन

तिरे बदन की मसाफ़त को तय किया तो मगर
पड़ा हुआ है अभी तक मिरा निढाल बदन

शुऊर-ओ-फ़िक्र पे ग़ालिब है जिस्म का मौसम
हर एक ख़्वाब बदन है हर इक ख़याल बदन