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नहीं है अब कोई रस्ता नहीं है | शाही शायरी
nahin hai ab koi rasta nahin hai

ग़ज़ल

नहीं है अब कोई रस्ता नहीं है

फ़रहत शहज़ाद

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नहीं है अब कोई रस्ता नहीं है
कोई जुज़ आप के अपना नहीं है

हर इक रस्ते का पत्थर पूछता है
तुझे क्या कुछ भी अब दिखता नहीं है

अजब है रौशनी तारीकियों सी
कि मैं हूँ और मिरा साया नहीं है

परस्तिश की है मेरी धड़कनों ने
तुझे मैं ने फ़क़त चाहा नहीं है

मैं शायद तेरे दुख में मर गया हूँ
कि अब सीने में कुछ दुखता नहीं है

लुटा दी मौत भी क़दमों पे तेरे
बचा कर तुझ से कुछ रक्खा नहीं है

क़यामत है यही इदराक-ए-जानाँ
मैं उस का हूँ कि जो मेरा नहीं है

मिरी बातें हैं सब बातें तुम्हारी
मिरा अपना कोई क़िस्सा नहीं है

तुझे महसूस भी मैं कर न पाऊँ
अंधेरा है मगर इतना नहीं है

ब-जुज़ 'नीतू' की यादें अब जहाँ में
कोई 'शहज़ाद'-जी तेरा नहीं है