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नहीं दो क़ुब्बा-ए-पिस्तान शोख़-ओ-शंग सीने पर | शाही शायरी
nahin do qubba-e-pistan shoKH-o-shang sine par

ग़ज़ल

नहीं दो क़ुब्बा-ए-पिस्तान शोख़-ओ-शंग सीने पर

सय्यद अाग़ा अली महर

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नहीं दो क़ुब्बा-ए-पिस्तान शोख़-ओ-शंग सीने पर
नज़र आते हैं मीना-ए-मय-ए-गुल-रंग सीने पर

नहीं रखे हैं तू ने हर तरह के फूल अंगिया में
जवाहर ये नज़र आते हैं रंगा-रंग सीने पर

नहीं लौह-ए-मज़ार-ए-रफ़्तगान-ए-शहर-ए-ख़ामोशाँ
ग़म-ए-फ़ुर्क़त का रख कर सो रहे हैं संग सीने पर

नुमूद जिस्म का उस सीम-तन को है ख़याल इतना
कि ख़ुश रहता है ख़य्यातों से कपड़े तंग सीने पर

ख़ुदा के फ़ज़्ल से शौक़-ए-लुग़त है 'मेहर' को इतना
धरे रहते हैं पहरों नुस्ख़ा-ए-फ़रसंग सीने पर