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नग़्मा-ज़न है नज़र-ए-बे-आवाज़ | शाही शायरी
naghma-zan hai nazar-e-be-awaz

ग़ज़ल

नग़्मा-ज़न है नज़र-ए-बे-आवाज़

सबा नक़वी

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नग़्मा-ज़न है नज़र-ए-बे-आवाज़
क्यूँ मिरे दिल असर-ए-बे-आवाज़

मेरे दिल से उन्हें अपने दिल की
मिल रही है ख़बर-ए-बे-आवाज़

लाख किरनों की ज़बाँ रखता है
एक नूर-ए-सहर-ए-बे-आवाज़

हुई बर्बाद पस-ए-बे-हुनराँ
सई-ए-अर्ज़-ए-हुनर-ए-बे-आवाज़

पए हंगामा-ए-हस्ती-ए-बशर
मौत है चारागर-ए-बे-आवाज़

है वो बे-पाँव गुज़रने की दलील
इर्तिक़ा का सफ़र-ए-बे-आवाज़

रंग लाया है सदा बन के 'सबा'
मेरा ख़ून-ए-जिगर-ए-बे-आवाज़