नए ज़माने के नित-नए हादसात लिखना
उदास फूलों की ज़र्द पत्तों की बात लिखना
फ़लक दरीचों से झाँकते ख़ुशनुमा मनाज़िर
ज़मीं पे बे-ज़ारियों में लिपटी हयात लिखना
थकन का एहसास हो तो कर लेना याद उस को
अधूरे ख़्वाबों की सर-फिरी काएनात लिखना
सियाही किस ने बिखेर दी कोरे काग़ज़ों पर
कि उजले अल्फ़ाज़ खा गए कैसे मात लिखना
ये कौन उस की कहानियाँ फिर सुना रहा है
कहाँ से आई है ख़ुशबुओं की बरात लिखना
अँधेरे रस्ते में रौशनी की सदा से पहले
ये किस ने काँधे पे रख दिया अपना हात लिखना
उजाले फ़र्दा के ढूँढती हैं थकी निगाहें
ये किन हिसारों में क़ैद है अपनी ज़ात लिखना
भटक गई है चहार सम्तों में सोच क्यूँ कर
कि ज़ेहन-ओ-दिल पर लगा गया कौन घात लिखना
कलाम तेरा फ़सुर्दा चेहरों का आइना हो
तू अपने अशआर में हर इक दिल की बात लिखना
उसे ये ज़िद थी कि दिन को लिखूँ मैं रात 'अंजुम'
मुझे न मंज़ूर था कभी दिन को रात लिखना
ग़ज़ल
नए ज़माने के नित-नए हादसात लिखना
आनन्द सरूप अंजुम