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नदीम-ए-दर्द-ए-मोहब्बत बड़ा सहारा है | शाही शायरी
nadim-e-dard-e-mohabbat baDa sahaara hai

ग़ज़ल

नदीम-ए-दर्द-ए-मोहब्बत बड़ा सहारा है

साग़र निज़ामी

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नदीम-ए-दर्द-ए-मोहब्बत बड़ा सहारा है
जभी तो ये ग़म-ए-दौराँ हमें गवारा है

ज़माना कहता है हंगामा-ए-हयात जिसे
मिरे हुजूम-ए-तमन्ना का इस्तिआ'रा है

जो मेरे दिल को है आतिश-कदा बनाए हुए
वो सोज़ उन की नज़र का ही आश्कारा है

अकेला छोड़ के तूफ़ान को गुज़र जाए
ये बे-रुख़ी मिरी कश्ती को कब गवारा है

न जाने मौज-ए-तबस्सुम है या कोई आँसू
फिर उन के होंट पे बेताब इक सितारा है

मजाल-ए-इश्क़ कहाँ थी कि हम को करता ख़ाक
हमें तो ज़ीस्त की पामालियों ने मारा है

वफ़ा-ए-दोस्त की मस्ती नसीब है 'साग़र'
जफ़ा-ए-दहर फ़क़त इस लिए गवारा है