नदी किनारे जो नग़्मा-सरा मलंग हुए
हुबाब मौज में आ आ के जल-तरंग हुए
इरम के फूल अज़ल का निखार तूर की लौ
सख़ी चनाब की वादी में आ के झंग हुए
कभी जो साज़ को छेड़ा बहार-मस्तों ने
तो गंग गंग शजर हम-ए-ज़बान-ए-चंग हुए
अता किया तिरे माथे ने जिन को ईद का चाँद
निसार उन पे सितारों के राग रंग हुए
शब-ए-हयात में इंसाँ के वलवले 'अफ़ज़ल'
उभर के तारे बने कहकशाँ के संग हुए
ग़ज़ल
नदी किनारे जो नग़्मा-सरा मलंग हुए
शेर अफ़ज़ल जाफ़री