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नदी किनारे जो नग़्मा-सरा मलंग हुए | शाही शायरी
nadi kinare jo naghma-sara malang hue

ग़ज़ल

नदी किनारे जो नग़्मा-सरा मलंग हुए

शेर अफ़ज़ल जाफ़री

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नदी किनारे जो नग़्मा-सरा मलंग हुए
हुबाब मौज में आ आ के जल-तरंग हुए

इरम के फूल अज़ल का निखार तूर की लौ
सख़ी चनाब की वादी में आ के झंग हुए

कभी जो साज़ को छेड़ा बहार-मस्तों ने
तो गंग गंग शजर हम-ए-ज़बान-ए-चंग हुए

अता किया तिरे माथे ने जिन को ईद का चाँद
निसार उन पे सितारों के राग रंग हुए

शब-ए-हयात में इंसाँ के वलवले 'अफ़ज़ल'
उभर के तारे बने कहकशाँ के संग हुए