नाम ख़ुश्बू था सरापा भी ग़ज़ल जैसा था
चाँद से चेहरे पे पर्दा भी ग़ज़ल जैसा था
सारे अल्फ़ाज़ ग़ज़ल जैसे थे गुफ़्तार के वक़्त
रंग-ए-इज़हार-ए-तमन्ना भी ग़ज़ल जैसा था
फूल ही फूल थे कलियाँ थीं हसीं गलियाँ थीं
आप के घर का वो रस्ता भी ग़ज़ल जैसा था
उस की आँखें भी हसीं आँख में आँसू भी हसीं
ग़म में डूबा हुआ चेहरा भी ग़ज़ल जैसा था
वो जवानी वो मोहब्बत वो शरारत का नशा
वो मिरी उम्र का हिस्सा भी ग़ज़ल जैसा था
फ़ासले थे न जुदाई थी न तन्हाई थी
तेरी क़ुर्बत का वो लम्हा भी ग़ज़ल जैसा था
वो न मेरा न मैं उस का था मगर ऐ 'दाना'
धुँदला धुँदला सा वो रिश्ता भी ग़ज़ल जैसा था
ग़ज़ल
नाम ख़ुश्बू था सरापा भी ग़ज़ल जैसा था
अब्बास दाना