नालों से मेरे कब तह-ओ-बाला जहाँ नहीं
कब आसमाँ ज़मीन-ओ-ज़मीं आसमाँ नहीं
क़ातिल की चश्म-ए-तर न हो ये ज़ब्त-ए-आह देख
जूँ शम्अ' सर कटे पे उठा याँ धुआँ नहीं
ऐ बुलबुलान-ए-शो'ला-दम इक नाला और भी
गुम-कर्दा-राह-ए-बाग़ हूँ याद आशियाँ नहीं
इस बज़्म में नहीं कोई आगाह वर्ना कब
वाँ ख़ंदा ज़ेर-ए-लब उधर अश्क-ए-निहाँ नहीं
ऐ दिल तमाम नफ़अ' है सौदा-ए-इश्क़ में
इक जान का ज़ियाँ है सो ऐसा ज़ियाँ नहीं
नाज़-ओ-निगह रविश सभी लागू हैं जान के
है कौन अदा वो तेरी कि जो जाँ-सिताँ नहीं
मिलना तिरा ये ग़ैर से हो बहर-ए-मस्लहत
हम को तो सादगी से तिरी ये गुमाँ नहीं
आज़ुर्दा तक भी कुछ न है उस के रू-ब-रू
माना कि आप सा कोई जादू-बयाँ नहीं
ग़ज़ल
नालों से मेरे कब तह-ओ-बाला जहाँ नहीं
मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दा