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नादान होशियार बने जिन के रूप से | शाही शायरी
nadan hoshiyar bane jin ke rup se

ग़ज़ल

नादान होशियार बने जिन के रूप से

वाजिद सहरी

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नादान होशियार बने जिन के रूप से
वो भी झुलस गए हैं हवादिस की धूप से

हमराह अजनबी के बहुत दूर तक गया
चेहरा था मिलता जुलता ज़रा उन के रूप से

कैसी हवा ये आई गुलिस्ताँ से गर्म गर्म
क्या फूल शो'ले बन गए सावन की धूप से

क्या क्या न हादसे मिरे दिल पर गुज़र गए
लेकिन शगुफ़्तगी न गई रंग-रूप से

'वाजिद' उसे न मंज़िल-ए-मक़्सूद मिल सकी
घबरा के रह गया जो मसाइब की धूप से