ना-तवाँ इश्क़ ने आख़िर किया ऐसा हम को
ग़म उठाने का भी बाक़ी नहीं यारा हम को
दर्द-ए-फ़ुर्क़त से तिरे ज़ोफ़ है ऐसा हम को
ख़्वाब में भी तिरे दुश्वार है आना हम को
जोश-ए-वहशत में हो क्या हम को भला शुक्र-ए-लिबास
बस किफ़ायत है जुनूँ दामन-ए-सहरा हम को
रहबरी की दहन-ए-यार की जानिब ख़त ने
ख़िज़्र ने चश्मा-ए-हैवान ये दिखाया हम को
दिल गिरा उस के ज़नख़दाँ में फ़रेब-ए-ख़त से
चाह ख़स-पोश था ऐ वाए न सूझा हम को
वाह काहीदगी-ए-जिस्म भी क्या काम आई
बज़्म में थे प रक़ीबों ने न देखा हम को
क़ालिब-ए-जिस्म में जाँ आ गई गोया 'शिबली'
मोजज़ा फ़िक्र ने अपनी ये दिखाया हम को
ग़ज़ल
ना-तवाँ इश्क़ ने आख़िर किया ऐसा हम को
शिबली नोमानी