ना-ख़ुश जो हो गुल-बदन किसी का
क्या भाए उसे सुख़न किसी का
गुल की मुझे क्यूँ कली दिखाई
याद आ गया फिर दहन किसी का
हर संग की कोह पर सदा है
याँ दफ़्न है कोहकन किसी का
करते हो पसंद वहशत-ए-दिल
ले जाओगे क्या हिरन किसी का
भूली है सबा क़बा-ए-गुल पर
देखा नहीं पैरहन किसी का
आशिक़ ही के जब न काम आया
किस काम का बाँकपन किसी का
आ जाए किसी की मौत मुझ को
मिल जाए मुझे कफ़न किसी का
सीने से हमारा दिल न ले जाओ
छुड़वाते हो क्यूँ वतन किसी का
गाते हैं 'सख़ी' ही की ग़ज़ल वो
भाता ही नहीं सुख़न किसी का
ग़ज़ल
ना-ख़ुश जो हो गुल-बदन किसी का
सख़ी लख़नवी