EN اردو
ना-ख़ुश जो हो गुल-बदन किसी का | शाही शायरी
na-KHush jo ho gul-badan kisi ka

ग़ज़ल

ना-ख़ुश जो हो गुल-बदन किसी का

सख़ी लख़नवी

;

ना-ख़ुश जो हो गुल-बदन किसी का
क्या भाए उसे सुख़न किसी का

गुल की मुझे क्यूँ कली दिखाई
याद आ गया फिर दहन किसी का

हर संग की कोह पर सदा है
याँ दफ़्न है कोहकन किसी का

करते हो पसंद वहशत-ए-दिल
ले जाओगे क्या हिरन किसी का

भूली है सबा क़बा-ए-गुल पर
देखा नहीं पैरहन किसी का

आशिक़ ही के जब न काम आया
किस काम का बाँकपन किसी का

आ जाए किसी की मौत मुझ को
मिल जाए मुझे कफ़न किसी का

सीने से हमारा दिल न ले जाओ
छुड़वाते हो क्यूँ वतन किसी का

गाते हैं 'सख़ी' ही की ग़ज़ल वो
भाता ही नहीं सुख़न किसी का