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ना-फ़हमी अपनी पर्दा है दीदार के लिए | शाही शायरी
na-fahmi apni parda hai didar ke liye

ग़ज़ल

ना-फ़हमी अपनी पर्दा है दीदार के लिए

हैदर अली आतिश

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ना-फ़हमी अपनी पर्दा है दीदार के लिए
वर्ना कोई नक़ाब नहीं यार के लिए

नूर-ए-तजल्ली है तिरे रुख़्सार के लिए
आँखें मरी कलीम हैं दीदार के लिए

फ़िदये बहुत उस अबरू-ए-ख़मदार के लिए
चू रंग की कमी नहीं तलवार के लिए

क़ौल अपना है ये सुब्हा-ओ-ज़ुन्नार के लिए
दो फंदे हैं ये काफिर-ओ-दीं-दार के लिए

लुत्फ़ चमन है बुलबुल गुलज़ार के लिए
कैफ़ियत-ए-शराब है मय-ख़्वार के लिए

सेरी न होगी तिश्ना-ए-दीदार के लिए
पानी नहीं चह-ए-ज़क़न-ए-यार के लिए

उतनी ही है नुमूद मेरी यार के लिए
शोहरा है जिस क़दर मरे अशआर के लिए

दश्त अदम से आते हैं बाग़ जहाँ में हम
बे-दाग़ लाला-ओ-गुल बे-ख़ार के लिए

शमशाद अपने तिरे को बेचे तो लीजिए
इस लाला रो की लिपटती दस्तार के लिए

दो आँखें चेहरे पर नहीं तेरे फ़क़ीर के
दो ठेकरे हैं भीक के दीदार के लिए

सुर्मा लगाया कीजिए आँखों में मेहरबाँ
इक्सीर ये सुफ़ूफ़ है बीमार के लिए

हल्क़ा में ज़ुल्फ़-ए-यार की मोती पिरोइए
दंदाँ ज़रूर हैं दहन-ए-मार के लिए

गुफ़्त-ओ-शुनीद में हूँ बसर दिन बहार के
गुल के लिए है गोश ज़बाँ ख़ार के लिए

बे-यार सर पटकने से हिलता है घर मिरा
रहता है ज़लज़ला दर-ओ-दीवार के लिए

बैठा जो उस के साया में दीवाना हो गया
साया परी का है तिरी दीवार के लिए

बुलबुल ही को बहार के जाने का ग़म नहीं
हर बर्ग हाथ मलता है गुलज़ार के लिए

ऐ शाह-ए-हुस्न ज़ुल्फ़ ओ रुख़ ओ गोश चश्म ओ लब
क्या क्या इलाक़े हैं तिरी सरकार के लिए

चाल अब्र की चला जो गुलिस्ताँ में झूम कर
ताऊस ने क़दम तिरे रहवार के लिए

आया जो देखने तिरे हुस्न-ओ-जमाल को
पकड़ा गया वो इश्क़ के बेगार के लिए

हाजत नहीं बनाओ की ऐ नाज़नीं तुझे
ज़ेवर है सादगी तिरे रुख़्सार के लिए

बीमार तंदुरुस्त हो देखे जो रोए यार
क्या चाशनी है शर्बत दीदार के लिए

इस बादशाह-ए-हुस्न की मंज़िल में चाहिए
बाल-ए-हुमा की पर छती दीवार के लिए

सौदा-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार में काफ़िर हुआ हूँ में
सुम्बुल के तार चाहिएँ ज़ुन्नार के लिए

ज़ंजीर ओ तौक़ जो कि है बाज़ार-ए-दहर में
सौदा है उस परी के ख़रीदार के लिए

चूना बनेंगे ब'अद-ए-फ़ना अपने उस्तुख़्वाँ
दौलत सराए यार की दीवार के लिए

माशूक़ की ज़बान से है दुश्नाम दिल पज़ीर
शीरीनी ज़हर है तिरी गुफ़्तार के लिए

जान से अज़ीज़ तर है मरे दिल को दाग़ इश्क़
महताब लहद की शब-ए-तार के लिए

वो मस्त ख़्वाब चश्म है कोई बला-ए-बद
क्या मर्तबा है फ़त्ना-ए-बेदार के लिए

ख़ल्वत से अंजुमन का कहाँ यार को दिमाग़
वो जिंस बे-बहा नहीं बाज़ार के लिए

पहना है जब से तू ने शब माह में उसे
क्या क्या शगूफ़े फूलते हैं हार के लिए

छकड़ा हुए हैं सोच के राह-ए-वफ़ा में पावँ
पहिए लगाइए उन्हें रफ़्तार के लिए

जो मुश्तरी है बंदा है उस ख़ुश-जमाल का
यूसुफ़ बने ग़ुलाम ख़रीदार के लिए

सोने के पत्ते होवें हर इक गुल के कान में
मक़्दूर हो जो बुलबुल गुलज़ार के लिए

गुल-हा-ए-ज़ख़्म से हूँ शहादत-तलब निहाल
तौफ़ीक़-ए-ख़ैर हो तिरी तलवार के लिए

अंधेर है जो दम की न इस के हो रौशनी
यूसुफ़ मिरा चराग़ है बाज़ार के लिए

एहसाँ जो इब्तिदा से है आतिश वही है आज
कुछ इंतिहा नहीं करम-ए-यार के लिए