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न सहरा है न अब दीवार-ओ-दर है | शाही शायरी
na sahra hai na ab diwar-o-dar hai

ग़ज़ल

न सहरा है न अब दीवार-ओ-दर है

अर्शी भोपाली

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न सहरा है न अब दीवार-ओ-दर है
चमन में नग़्मा-गर साज़-ए-सहर है

सुराग़-ए-कारवान-ए-रंग-ओ-बू से
सबा आवारा-ए-गर्द-ए-सफ़र है

असीरो अब दर-ए-ज़िंदाँ करो बाज़
सर-ए-नाख़ुन कोई उक़्द-ए-गुहर है

नदीमो दाद दो अहल-ए-जुनूँ को
नमक-दाँ ज़ख़्म-ए-पा है ज़ख़्म-ए-सर है