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न पूछ उस की जो अपने अंदर छुपा | शाही शायरी
na puchh uski jo apne andar chhupa

ग़ज़ल

न पूछ उस की जो अपने अंदर छुपा

जौन एलिया

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न पूछ उस की जो अपने अंदर छुपा
ग़नीमत कि मैं अपने बाहर छुपा

मुझे याँ किसी पे भरोसा नहीं
मैं अपनी निगाहों से छुप कर छुपा

पहुँच मुख़बिरों की सुख़न तक कहाँ
सो मैं अपने होंटों पे अक्सर छुपा

मिरी सुन न रख अपने पहलू में दिल
इसे तू किसी और के घर छुपा

यहाँ तेरे अंदर नहीं मेरी ख़ैर
मिरी जाँ मुझे मेरे अंदर छुपा

ख़यालों की आमद में ये ख़ारज़ार
है तीरों की यलग़ार तू सर छुपा