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न पूछ नुस्ख़ा-ए-मरहम जराहत-ए-दिल का | शाही शायरी
na puchh nusKHa-e-marham jarahat-e-dil ka

ग़ज़ल

न पूछ नुस्ख़ा-ए-मरहम जराहत-ए-दिल का

मिर्ज़ा ग़ालिब

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न पूछ नुस्ख़ा-ए-मरहम जराहत-ए-दिल का
कि उस में रेज़ा-ए-अल्मास जुज़्व-ए-आज़म है

बहुत दिनों में तग़ाफ़ुल ने तेरे पैदा की
वो इक निगह कि ब-ज़ाहिर निगाह से कम है