न पूछ नुस्ख़ा-ए-मरहम जराहत-ए-दिल का
कि उस में रेज़ा-ए-अल्मास जुज़्व-ए-आज़म है
बहुत दिनों में तग़ाफ़ुल ने तेरे पैदा की
वो इक निगह कि ब-ज़ाहिर निगाह से कम है
ग़ज़ल
न पूछ नुस्ख़ा-ए-मरहम जराहत-ए-दिल का
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मिर्ज़ा ग़ालिब
न पूछ नुस्ख़ा-ए-मरहम जराहत-ए-दिल का
कि उस में रेज़ा-ए-अल्मास जुज़्व-ए-आज़म है
बहुत दिनों में तग़ाफ़ुल ने तेरे पैदा की
वो इक निगह कि ब-ज़ाहिर निगाह से कम है