न मेरे दिल न जिगर पर न दीदा-ए-तर पर
करम करे वो निशान-ए-क़दम तो पत्थर पर
तुम्हारे हुस्न की तस्वीर कोई क्या खींचे
नज़र ठहरती नहीं आरिज़-ए-मुनव्वर पर
किसी ने ली रह-ए-का'बा कोई गया सू-ए-दैर
पड़े रहे तिरे बंदे मगर तिरे दर पर
गुनाहगार हूँ मैं वाइ'ज़ो तुम्हें क्या फ़िक्र
मिरा मुआ'मला छोड़ो शफ़ी-ए-महशर पर
उन अब्रुओं से कहो कुश्तनी में जान भी है
इसी के वास्ते ख़ंजर खिंचा है ख़ंजर पर
पिला दे आज कि मरते हैं रिंद ऐ साक़ी
ज़रूर क्या कि ये जल्सा हो हौज़-ए-कौसर पर
सलाहियत भी तो पैदा कर ऐ दिल-ए-मुज़्तर
पड़ा है नक़्श-ए-कफ़-ए-पा-ए-यार पत्थर पर
वफ़ूर-ए-जोश-ए-ज़िया और उन के दाँतों का
हबाब-ए-गुंबद-ए-गर्दूँ है आब-ए-गौहर पर
अख़ीर वक़्त है 'आसी' चलो मदीने को
निसार हो के मरो तुर्बत-ए-पयम्बर पर
ग़ज़ल
न मेरे दिल न जिगर पर न दीदा-ए-तर पर
आसी ग़ाज़ीपुरी