EN اردو
न कोई ख़्वाब न माज़ी ही मेरे हाल के पास | शाही शायरी
na koi KHwab na mazi hi mere haal ke pas

ग़ज़ल

न कोई ख़्वाब न माज़ी ही मेरे हाल के पास

शहपर रसूल

;

न कोई ख़्वाब न माज़ी ही मेरे हाल के पास
कोई कमाल न ठहरा मिरे ज़वाल के पास

न मीठे लफ़्ज़ न लहजा ही इंदिमाल के पास
जवाब का तो गुज़र भी नहीं सवाल के पास

फ़िराक़ ओ वस्ल के मअ'नी बदल के रख देगा
तिरे ख़याल का होना मिरे ख़याल के पास

मसर्रतों के दुखों का तो ज़िक्र भी बेकार
कहाँ है कोई मुदावा किसी मलाल के पास

नहीं है कोई भी सरहद मिरे जुनूँ आगे
जहान-ए-हुस्न-ए-जहाँ है तिरे जमाल के पास

शिकारियों की उम्मीदें सँवरती रहती हैं
तुयूर घूमते फिरते हैं ख़ूब जाल के पास

तुम्हारे लफ़्ज़ उसे खींचते तो थे 'शहपर'
जुनूब कैसे पहुँचता मगर शुमाल के पास