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न कोई ख़्वाब हमारे हैं न ताबीरें हैं | शाही शायरी
na koi KHwab hamare hain na tabiren hain

ग़ज़ल

न कोई ख़्वाब हमारे हैं न ताबीरें हैं

क़तील शिफ़ाई

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न कोई ख़्वाब हमारे हैं न ताबीरें हैं
हम तो पानी पे बनाई हुई तस्वीरें हैं

क्या ख़बर कब किसी इंसान पे छत आन गिरे
क़र्या-ए-संग है और काँच की तामीरें हैं

लुट गए मुफ़्त में दोनों, तिरी दौलत मिरा दिल
ऐ सख़ी! तेरी मिरी एक सी तक़दीरें हैं

हम जो ना-ख़्वांदा नहीं हैं तो चलो आओ पढ़ें
वो जो दीवार पे लिक्खी हुई तहरीरें हैं

हो न हो ये कोई सच बोलने वाला है 'क़तील'
जिस के हाथों में क़लम पाँव में ज़ंजीरें हैं