न कोई हिज्र न कोई विसाल है शायद
बस एक हालत-ए-बे-माह-ओ-साल है शायद
हुआ है दैर-ओ-हरम में जो मोतकिफ़ वो यक़ीन
तकान-ए-कश्मकश-ए-एहतिमाल है शायद
ख़याल-ओ-वहम से बरतर है उस की ज़ात सो वो
निहायत-ए-हवस-ए-ख़द्द-ओ-ख़ाल है शायद
मैं सत्ह-ए-हर्फ़ पे तुझ को उतार लाया हूँ
तिरा ज़वाल ही मेरा कमाल है शायद
मैं एक लम्हा-ए-मौजूद से इधर न उधर
सो जो भी मेरे लिए है मुहाल है शायद
वो इंहिमाक हर इक काम में कि ख़त्म न हो
तो कोई बात हुई है मलाल है शायद
गुमाँ हुआ है ये अम्बोह से जवाबों के
सवाल ख़ुद ही जवाब-ए-सवाल है शायद
ग़ज़ल
न कोई हिज्र न कोई विसाल है शायद
जौन एलिया