न कर्ब-ए-हिज्र न कैफ़्फ़ियत-ए-विसाल में हूँ
मुझे न छेड़िए अब मैं अजीब हाल में हूँ
तमाम रंग-ए-इबारत में सोज़-ए-जाँ से मिरे
मैं हुस्न-ए-ज़ात हूँ और मंज़िल-ए-जमाल में हूँ
मिरा वजूद ज़रूरत है हर ज़माने की
मैं रौशनी की तरह ज़ेहन-ए-माह-ओ-साल में हूँ
अभी वसीला-ए-इज़हार ढूँढती है निगाह
अभी सवाल कहाँ हसरत-ए-सवाल में हूँ
मुझे न देख मिरी ज़ात से अलग कर के
मैं जो भी कुछ हूँ फ़क़त अपने ख़द्द-ओ-ख़ाल में हूँ
मैं जी रहा हूँ ये मेरा कमाल है 'हशरी'
मैं अपने अहद की तहज़ीब के ज़वाल में हूँ
ग़ज़ल
न कर्ब-ए-हिज्र न कैफ़्फ़ियत-ए-विसाल में हूँ
आबिद हशरी