न कर तो ऐ दिल मजबूर आह-ए-ज़ेर-ए-लबी
न टूट जाए कहीं ये सुकूत-ए-नीम-शबी
ये काविश-ए-ग़म-ए-पिन्हाँ है इश्क़ का हासिल
रवा नहीं तिरी फ़ुर्क़त में आरज़ू-तलबी
ख़ुदा करे यहीं रुक जाए गर्दिश-ए-दौराँ
है राज़दार-ए-मोहब्बत सुकूत-ए-नीम-शबी
कहाँ हुआ है तू शिकवा-गुज़ार-ए-महरूमी
जहाँ है साँस भी लेना कमाल-ए-बे-अदबी
नुमूद-ए-हुस्न है गोया सराब का आलम
ये काएनात है हंगामा हाए बुलअजबी
दिखा रहा हूँ नशेब-ओ-फ़राज़ आलम के
मगर ये दिल है कि है महव-ए-इंतिहा-तलबी
मुझे भी फ़ख़्र है इस सिलसिले में ऐ 'साक़िब'
ख़ुदा का शुक्र कि हूँ हाशमी-ओ-मुत्तलबी
ग़ज़ल
न कर तो ऐ दिल मजबूर आह-ए-ज़ेर-ए-लबी
साक़िब कानपुरी