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न कर तो ऐ दिल मजबूर आह-ए-ज़ेर-ए-लबी | शाही शायरी
na kar to ai dil majbur aah-e-zer-e-labi

ग़ज़ल

न कर तो ऐ दिल मजबूर आह-ए-ज़ेर-ए-लबी

साक़िब कानपुरी

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न कर तो ऐ दिल मजबूर आह-ए-ज़ेर-ए-लबी
न टूट जाए कहीं ये सुकूत-ए-नीम-शबी

ये काविश-ए-ग़म-ए-पिन्हाँ है इश्क़ का हासिल
रवा नहीं तिरी फ़ुर्क़त में आरज़ू-तलबी

ख़ुदा करे यहीं रुक जाए गर्दिश-ए-दौराँ
है राज़दार-ए-मोहब्बत सुकूत-ए-नीम-शबी

कहाँ हुआ है तू शिकवा-गुज़ार-ए-महरूमी
जहाँ है साँस भी लेना कमाल-ए-बे-अदबी

नुमूद-ए-हुस्न है गोया सराब का आलम
ये काएनात है हंगामा हाए बुलअजबी

दिखा रहा हूँ नशेब-ओ-फ़राज़ आलम के
मगर ये दिल है कि है महव-ए-इंतिहा-तलबी

मुझे भी फ़ख़्र है इस सिलसिले में ऐ 'साक़िब'
ख़ुदा का शुक्र कि हूँ हाशमी-ओ-मुत्तलबी