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न जाने शेर में किस दर्द का हवाला था | शाही शायरी
na jaane sher mein kis dard ka hawala tha

ग़ज़ल

न जाने शेर में किस दर्द का हवाला था

सलीम अहमद

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न जाने शेर में किस दर्द का हवाला था
कि जो भी लफ़्ज़ था वो दिल दुखाने वाला था

उफ़ुक़ पे देखना था मैं क़तार क़ाज़ों की
मिरा रफ़ीक़ कहीं दूर जाने वाला था

मिरा ख़याल था या खौलता हुआ पानी
मिरे ख़याल ने बरसों मुझे उबाला था

अभी नहीं है मुझे सर्द ओ गर्म की पहचान
ये मेरे हाथों में अँगार था कि ज़ाला था

मैं आज तक कोई वैसी ग़ज़ल न लिख पाया
वो सानेहा तो बहुत दिल दुखाने वाला था

मआनी-ए-शब-ए-तारीक खुल रहे थे 'सलीम'
जहाँ चराग़ नहीं था वहाँ उजाला था