EN اردو
न गुल से है ग़रज़ तेरे न है गुलज़ार से मतलब | शाही शायरी
na gul se hai gharaz tere na hai gulzar se matlab

ग़ज़ल

न गुल से है ग़रज़ तेरे न है गुलज़ार से मतलब

मह लक़ा चंदा

;

न गुल से है ग़रज़ तेरे न है गुलज़ार से मतलब
रखा चश्म-ए-नज़र शबनम में अपने यार से मतलब

ये दिल दाम-ए-निगह में तर्क के बस जा ही अटका है
बर आवे किस तरह अल्लाह अब ख़ूँ-ख़्वार से मतलब

ब-जुज़ हक़ के नहीं है ग़ैर से हरगिज़ तवक़्क़ो कुछ
मगर दुनिया के लोगों में मुझे है प्यार से मतलब

न समझा हम को तू ने यार ऐसी जाँ-फ़िशानी पर
भला पावेंगे ऐ नादाँ किसी हुश्यार से मतलब

न 'चंदा' को तमअ जन्नत की ने ख़ौफ़-ए-जहन्नम है
रहे है दो-जहाँ में हैदर-ए-कर्रार से मतलब