न फ़ैसला तुम्हारा है न फ़ैसला हमारा है
ये वक़्त के क़ज़्ज़ाक़ ने छुपा के तीर मारा है
फ़क़ीह-ए-शहर ज़िंदगी की आँख का जो नूर था
वो मैं ने तेरे आस्ताँ पे ख़्वाब ला के वारा है
सितार-गाँ की बज़्म में उदास चाँद देखना
न-जाने कैसा ख़्वाब है न-जाने क्या इशारा है
हमें ये ख़्वाब तितलियाँ तलाशना हैं उम्र-भर
कि हाथ ख़ाली निकले हैं चराग़ है न तारा है
पस-ए-ग़ुबार वक़्त यूँ पुकारता है कौन ये
कि हिज्र-ओ-ग़म का सिलसिला बताओ क्यूँ गवारा है
'सज्जाद' भी मलूल है कि क़ाफ़िला है शाम का
फ़लक पे एक चाँद है जो आख़िरी सहारा है

ग़ज़ल
न फ़ैसला तुम्हारा है न फ़ैसला हमारा है
अहमद सज्जाद बाबर