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न फ़ैसला तुम्हारा है न फ़ैसला हमारा है | शाही शायरी
na faisla tumhaara hai na faisla hamara hai

ग़ज़ल

न फ़ैसला तुम्हारा है न फ़ैसला हमारा है

अहमद सज्जाद बाबर

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न फ़ैसला तुम्हारा है न फ़ैसला हमारा है
ये वक़्त के क़ज़्ज़ाक़ ने छुपा के तीर मारा है

फ़क़ीह-ए-शहर ज़िंदगी की आँख का जो नूर था
वो मैं ने तेरे आस्ताँ पे ख़्वाब ला के वारा है

सितार-गाँ की बज़्म में उदास चाँद देखना
न-जाने कैसा ख़्वाब है न-जाने क्या इशारा है

हमें ये ख़्वाब तितलियाँ तलाशना हैं उम्र-भर
कि हाथ ख़ाली निकले हैं चराग़ है न तारा है

पस-ए-ग़ुबार वक़्त यूँ पुकारता है कौन ये
कि हिज्र-ओ-ग़म का सिलसिला बताओ क्यूँ गवारा है

'सज्जाद' भी मलूल है कि क़ाफ़िला है शाम का
फ़लक पे एक चाँद है जो आख़िरी सहारा है