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न बुतों के न अब ख़ुदा के रहे | शाही शायरी
na buton ke na ab KHuda ke rahe

ग़ज़ल

न बुतों के न अब ख़ुदा के रहे

रौनक़ टोंकवी

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न बुतों के न अब ख़ुदा के रहे
हम कहीं के न दिल लगा के रहे

फ़ित्ने क्या क्या न वो उठा के रहे
हम भी कूचे में उन के जा के रहे

कर गई वो निगाह अपना काम
हम भरोसे पे इत्तिक़ा के रहे

नाम मेरा जहाँ लिखा पाया
ज़िद तो देखो कि वो मिटा के रहे

उस ने हर-चंद उज़्र-ए-ख़्वाब किया
हाल-ए-दिल हम मगर सुना के रहे

ले उड़ा उन को शौक़ ग़ैर के घर
हम तजस्सुस में नक़्श-ए-पा के रहे

अपनी हस्ती है इस तरह 'रौनक़'
जैसे कोई सरा में आ के रहे