न आने के उन के बहाने भी देखे
बड़े संग-दिल वो ज़माने भी देखे
उधर बुलबुलें रो रही हैं क़फ़स को
कि सय्याद गाते तराने भी देखे
ग़मों को भुलाने जो निकले हैं घर से
इसी धुन में कुछ बादा-ख़ाने भी देखे
न पाया उन्हें हो के मायूस लौटे
सभी हम ने उन के ठिकाने भी देखे
कभी आएगा वक़्त 'महताब' अपना
बहुत हम ने उन के ज़माने भी देखे
ग़ज़ल
न आने के उन के बहाने भी देखे
बशीर महताब