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मुस्तक़िल महव-ए-ग़म-ए-अहद-ए-गुज़िश्ता होना | शाही शायरी
mustaqil mahw-e-gham-e-ahd-e-guzishta hona

ग़ज़ल

मुस्तक़िल महव-ए-ग़म-ए-अहद-ए-गुज़िश्ता होना

नदीम सिरसीवी

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मुस्तक़िल महव-ए-ग़म-ए-अहद-ए-गुज़िश्ता होना
ऐसे होने से तो बेहतर है न दिल का होना

मैं हूँ इंसाँ मुझे इंसान ही रहने दीजे
मत सिखाएँ मुझे हर गाम फ़रिश्ता होना

देखनी पड़ती हैं हर मोड़ पे उधड़ी लाशें
कितना दुश्वार है इस शहर में बीना होना

ऐ मुसव्विर ज़रा तस्वीर में मंज़र ये उतार
दो किनारों को है देखा गया यकजा होना

हैं फ़राहम मुझे बे-राह-रवी के अस्बाब
ज़ेब देगा मुझे आवारा-ए-दुनिया होना

बस्तियाँ शहर-ए-ख़मोशाँ की तरह हैं आबाद
ज़िंदा लोगों को लुभाने लगा मुर्दा होना

ऐ परी-ज़ाद तिरे हिज्र में ये हम पे खुला
मौत से ज़ियादा अलम-बख़्श है तन्हा होना

ख़ुद ही गिर जाएगी ज़िंदान-ए-बदन की दीवार
रूह-ए-अफ़्सुर्दा को बेचैन भला क्या होना

खा गया रौनक़ें पैवंद-ओ-मरासिम की 'नदीम'
जिंस-ए-इख़्लास का बाज़ार में सस्ता होना