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मुस्कुराहटें सीखें क़हर की निगाहों से | शाही शायरी
muskurahaTen sikhen qahr ki nigahon se

ग़ज़ल

मुस्कुराहटें सीखें क़हर की निगाहों से

नज्म आफ़न्दी

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मुस्कुराहटें सीखें क़हर की निगाहों से
दाद-ए-सरकशी ले ली हम ने कज-कुलाहों से

क्या कहें मोहब्बत का राज़ कम-निगाहों से
हम ने दिल बनाए हैं आँसुओं से आहों से

अपनी मा'रिफ़त का हम एक दिन सबक़ देंगे
देखते चले जाओ अजनबी निगाहों से

उस के हक़ का मुजरिम हूँ फिर भी उस की रहमत है
ख़ुद बचा लिया मुझ को मुब्तज़िल गुनाहों से

फ़र्श पर है तख़्त उन का अर्श पर दिमाग़ अपना
क्या फ़क़ीर रहते हैं दब के बादशाहों से

सारे मसअले हल हैं मस्लक-ए-मोहब्बत में
उन की राह मिलती है बे-शुमार राहों से

'नज्म' ये निशानी है अहल-ए-दिल की दुनिया में
हम को ख़ास निस्बत है ग़म की बारगाहों से