मुश्किल है पता चलना क़िस्सों से मोहब्बत का
अंदाज़ा मुसीबत में होता है मुसीबत का
है नज़'अ के आलम में बीमार मोहब्बत का
मुश्किल है सँभलना अब बिगड़ी हुई हालत का
अफ़सोस कि हम सो कर जागे भी तो कब जागे
मरने पे खुला उक़्दा जीने की हक़ीक़त का
वो आए हैं ख़ुद अपने दीवाने को समझाने
ऐ जज़्बा-ए-दिल देखा इक़बाल मोहब्बत का
ऐ चश्म-ए-हक़ीक़त-बीं दिल की है बिसात इतनी
इक छोटा सा टुकड़ा है आईना-ए-हसरत का
क्यूँ इश्क़ के झगड़े को ले जाता है उक़्बा में
कर ख़ात्मा दुनिया में दुनिया की मुसीबत का
ऐ 'क़द्र' हसीनों को मैं दिल से न क्यूँ चाहूँ
जब हुस्न-परस्ती भी इक ज़ौक़ है फ़ितरत का

ग़ज़ल
मुश्किल है पता चलना क़िस्सों से मोहब्बत का
अबू ज़ाहिद सय्यद यहया हुसैनी क़द्र