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मुँह फ़क़ीरों से न फेरा चाहिए | शाही शायरी
munh faqiron se na phera chahiye

ग़ज़ल

मुँह फ़क़ीरों से न फेरा चाहिए

कलीम आजिज़

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मुँह फ़क़ीरों से न फेरा चाहिए
ये तो पूछा चाहिए क्या चाहिए

चाह का मेयार ऊँचा चाहिए
जो न चाहें उन को चाहा चाहिए

कौन चाहे है किसी को बे-ग़रज़
चाहने वालों से भागा चाहिए

हम तो कुछ चाहे हैं तुम चाहो हो कुछ
वक़्त क्या चाहे है देखा चाहिए

चाहते हैं तेरे ही दामन की ख़ैर
हम हैं दीवाने हमें क्या चाहिए

बे-रुख़ी भी नाज़ भी अंदाज़ भी
चाहिए लेकिन न इतना चाहिए

हम जो कहना चाहते हैं क्या कहें
आप कह लीजे जो कहना चाहिए

बात चाहे बे-सलीक़ा हो 'कलीम'
बात कहने का सलीक़ा चाहिए