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मुनासिब नहीं आसरा माँगना | शाही शायरी
munasib nahin aasra mangna

ग़ज़ल

मुनासिब नहीं आसरा माँगना

क़ाज़ी हसन रज़ा

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मुनासिब नहीं आसरा माँगना
दुआ माँगना भी तो क्या माँगना

अगर आँधियों से मुलाक़ात हो
हमारे लिए भी हवा माँगना

किनारों की उम्मीद गिर्दाब से
किनारों से मौज-ए-बला माँगना

तज़ब्ज़ुब के आलम में सोचा किए
दुआ माँगना या दवा माँगना

जहाँ बट रही हो ख़ुशी तोल कर
वहाँ दर्द बे-इंतिहा माँगना

अजब रास्ते के मुसाफ़िर हैं हम
न आया हमें रास्ता माँगना

उसी दिन 'रज़ा' मौत आ जाएगी
किसी दिन अगर पड़ गया माँगना