मुझे उन से मोहब्बत हो गई है
मेरी भी कोई क़ीमत हो गई है
वो जब से मुल्तफ़ित मुझ से हुए हैं
ये दुनिया ख़ूबसूरत हो गई है
चढ़ाया जा रहा हूँ दार पर मैं
बयाँ मुझ से हक़ीक़त हो गई है
रवाँ दरिया हैं इंसानी लहू के
मगर पानी की क़िल्लत हो गई है
मुझे भी इक सितमगर के करम से
सितम सहने की आदत हो गई है
हक़ीक़त ये है हम क्या उठ गए हैं
वफ़ा दुनिया से रुख़्सत हो गई है
ग़म-ए-जानाँ में जब से मुब्तला हूँ
ग़म-ए-दौराँ से फ़ुर्सत हो गई है
अब उन की कुफ़्र-सामानी भी 'आतिश'
दिल-ओ-जाँ पर इबारत हो गई है
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ग़ज़ल
मुझे उन से मोहब्बत हो गई है
अातिश बहावलपुरी