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मुझे रहीन-ए-ग़म-ए-जाँ-नवाज़ रहने दे | शाही शायरी
mujhe rahin-e-gham-e-jaan-nawaz rahne de

ग़ज़ल

मुझे रहीन-ए-ग़म-ए-जाँ-नवाज़ रहने दे

हमीद नागपुरी

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मुझे रहीन-ए-ग़म-ए-जाँ-नवाज़ रहने दे
दवा-ए-दर्द-ए-जिगर चारासाज़ रहने दे

निहाँ अभी मिरी वहशत का राज़ रहने दे
न छेड़ क़िस्सा-ए-ज़ुल्फ़-ए-दराज़ रहने दे

फ़साना-ए-ग़म-ए-हस्ती सुनाए जा हमदम
दराज़ है जो ये क़िस्सा दराज़ रहने दे

रज़ाई दोस्त यही है हरीम-ए-उल्फ़त में
जबीन-ए-शौक़ को वक़्फ़-ए-नियाज़ रहने दे

नियाज़-मंद हूँ तेरा ऐ बे-नियाज़ मिरे
न अपने दर से मुझे बे-नियाज़ रहने दे