मुझ पर सुरूर छा गया बादा-ए-दिल-नवाज़ से
दुनिया मिरी बदल गई एक निगाह-ए-नाज़ से
आँख में गर न आ सके दिल तो मक़ाम है तिरा
ख़ल्वत-ए-दिल में आ कभी अपने हरीम-ए-नाज़ से
साक़ी-ए-मेहरबाँ पिला बादा-ए-मअ'रिफ़त-असर
मस्त बना के दे ख़बर हुस्न-ए-अज़ल के राज़ से
देख निगाह-ए-शौक़ से हुस्न-ओ-जमाल का जहाँ
जल्वा ही जल्वा चार-सू हुस्न-ए-नज़र-नवाज़ से
जाम-ए-फ़रंग का नशा फ़िक्र-ओ-नज़र की मर्ग है
दिल का भला न हो सका बादा-ए-ख़ूँ-तराज़ से
मुझ को फ़रेब दे गया तुझ को फ़रेब दे गया
ज़हर पिला गया फ़रंग जाम-ए-ज़माना-साज़ से
क़ल्ब-ओ-जिगर भड़क उठे बादा-ए-नौ की आग से
दिल को सकूँ मिला हमें 'ताज' मय-ए-हिजाज़ से
ग़ज़ल
मुझ पर सुरूर छा गया बादा-ए-दिल-नवाज़ से
ज़हीर अहमद ताज