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मुझ को न दिल पसंद न दिल की ये ख़ू पसंद | शाही शायरी
mujhko na dil pasand na dil ki ye KHu pasand

ग़ज़ल

मुझ को न दिल पसंद न दिल की ये ख़ू पसंद

रियाज़ ख़ैराबादी

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मुझ को न दिल पसंद न दिल की ये ख़ू पसंद
पहलू से मेरे जाए दिल-ए-आरज़ू-पसंद

तुझ को अदू पसंद है वज़-ए-अदू पसंद
मुझ को अदा पसंद तिरी मुझ को तू पसंद

रोज़-ए-अज़ल थे ढेर हज़ारों लगे हुए
चुपके से छाँट लाए दिल-ए-आरज़ू-पसंद

तुम ने तो आस्तीं के सिवा हाथ भी रंगे
आया शहीद-ए-नाज़ का इतना लहू पसंद

ऐ दिल तिरी जगह शिकन-ए-ज़ुल्फ़ में नहीं
ख़ू बू तिरी पसंद न काफ़िर को तू पसंद

पहुँचा जो मैं तो धूम मची बज़्म-ए-यार में
आए हैं आज एक बड़े आरज़ू-पसंद

मस्जिद में जर्फ़-ए-आब न था कोई ले चले
आया जो मय-कदे में अछूता सुबू पसंद

जन्नत की हूर जैसे कोई मेरी क़ब्र पर
ऐ शम्अ' इस तरह मुझे आई है तू पसंद

आता पसंद काश कुछ उन का कलाम भी
बज़्म-ए-सुख़न में आए कई ख़ुश-गुलू पसंद

हो अक्स आइने में तिरा या हो कोई और
आया है इक हसीन तिरे रू-ब-रू पसंद

दिन में शबाब के वो भरे हैं शबाब में
मस्की हुई क़बा में नहीं है रफ़ू पसंद

मेरा मज़ाक़ और है मुझ को तो ऐ कलीम
पर्दे के साथ दूर से है गुफ़्तुगू पसंद

मय का न मय-कदे का नहीं कुछ रहेगा होश
आए ख़ुदा करे न कोई ख़ूब-रू पसंद

किस तरह उस ने रोके मिलाया है ख़ाक में
आया न आँख को भी हमारा लहू पसंद

कुछ शौक़ है तो अहल-ए-ख़राबात से मिलो
ऐ सूफ़ियो नहीं ये हमें हाव-हू पसंद

आएगा मय-कशो बत-ए-मय का शिकार याद
जन्नत में आ गई जो कोई आब-जू पसंद

सौ बार सर से शैख़ के टकरा चुके जिसे
हम को तो मय-कदे में वही है सुबू पसंद

जब पी लगा के मुँह दम-ए-इफ़्तार रिंद ने
बोतल के मुँह की आई फ़रिश्तों को बू पसंद

हो जाऊँ मैं भी गुम कहीं तेरी तलाश में
तेरी तरह मुझे है तिरी जुस्तुजू पसंद

ये कौन हैं 'रियाज़' हैं रुस्वा-ए-कू-ए-यार
आए हैं आज बन के बड़े आबरू-पसंद