मुझ दर्द सें यार आश्ना नईं
शायद कि किसी का मुब्तला नईं
ख़ूबाँ कूँ रवा है क़त्ल-ए-आशिक़
इस शहर में रस्म-ए-ख़ूँ-बहा नईं
नहीं बार यज़ीद-ए-बुल-हवस कूँ
ज़ालिम की गली है कर्बला नईं
तुझ ज़ुल्फ़ में दिल ने गुम किया राह
इस पैहम गली कूँ इंतिहा नईं
ऐ शम-ए-दिल-ए-'सिराज' मुझ कूँ
जलने के बग़ैर मुद्दआ नईं
ग़ज़ल
मुझ दर्द सें यार आश्ना नईं
सिराज औरंगाबादी