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मुझ दर्द सें यार आश्ना नईं | शाही शायरी
mujh dard sen yar aashna nain

ग़ज़ल

मुझ दर्द सें यार आश्ना नईं

सिराज औरंगाबादी

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मुझ दर्द सें यार आश्ना नईं
शायद कि किसी का मुब्तला नईं

ख़ूबाँ कूँ रवा है क़त्ल-ए-आशिक़
इस शहर में रस्म-ए-ख़ूँ-बहा नईं

नहीं बार यज़ीद-ए-बुल-हवस कूँ
ज़ालिम की गली है कर्बला नईं

तुझ ज़ुल्फ़ में दिल ने गुम किया राह
इस पैहम गली कूँ इंतिहा नईं

ऐ शम-ए-दिल-ए-'सिराज' मुझ कूँ
जलने के बग़ैर मुद्दआ नईं