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मुद्दत से ढूँडती है किसी की नज़र मुझे | शाही शायरी
muddat se DhunDti hai kisi ki nazar mujhe

ग़ज़ल

मुद्दत से ढूँडती है किसी की नज़र मुझे

शाद अमृतसरी

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मुद्दत से ढूँडती है किसी की नज़र मुझे
मैं किस मक़ाम पर हूँ नहीं है ख़बर मुझे

आवारगी उड़ाए फिरी मिस्ल-ए-बू-ए-गुल
कोई पुकारता ही रहा उम्र भर मुझे

यूँ जा रहा हूँ जैसे न आऊँगा फिर कभी
मुड़ मुड़ के देखती है तिरी रहगुज़र मुझे

क्या जाने किस ख़याल से चेहरा दमक उठा
मैं चारा-गर को देखता हूँ चारा-गर मुझे

अहद-ए-ख़िज़ाँ बहार की रुत नाम हैं फ़क़त
क्या बात कह गई है नसीम-ए-सहर मुझे

मंज़िल पे आ के 'शाद' अजब हादिसा हुआ
मैं हम-सफ़र को भूल गया हम-सफ़र मुझे