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मियान-ए-हिन्द-ओ-पाकिस्तान इक सरहद का झगड़ा है | शाही शायरी
miyan-e-hind-o-pakistan ek sarhad ka jhagDa hai

ग़ज़ल

मियान-ए-हिन्द-ओ-पाकिस्तान इक सरहद का झगड़ा है

खालिद इरफ़ान

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मियान-ए-हिन्द-ओ-पाकिस्तान इक सरहद का झगड़ा है
वगर्ना इस इमारत के मनारे एक जैसे हैं

कराची का किचन हो या वो दक्कन की रसोई हो
नमक का फ़र्क़ है बैगन बघारे एक जैसे हैं

पजामों के डिज़ाइन को बदल डाला तो क्या ग़म है
हमारी बीवियों के तो ग़रारे एक जैसे हैं

परेशाँ-हाल है पब्लिक मगर दोनों ममालिक के
मिरासी क्रिकेटर फ़िल्मी-सितारे एक जैसे हैं

कुँवारे लोग तो हर मुल्क में आज़ाद फिरते हैं
मगर शादी-शुदा क़िस्मत के मारे एक जैसे हैं

बराए-अक़्द-ख़्वानी क़ाज़ियों में फ़र्क़ है लेकिन
कराची और दिल्ली के छुवारे एक जैसे हैं

कुँवारा आदमी हो या कोई आज़ाद लीडर हो
जो बे-पेंदे के लौटे हैं वो सारे एक जैसे हैं

निकम्मे रहनुमा और अक़्ल से पैदल सियासत-दाँ
हमारे एक जैसे हैं तुम्हारे एक जैसे हैं

यहाँ का 'ख़ालिद-ए-इरफ़ाँ' वहाँ के 'राहत-इंदोरी'
निरे शाइर हैं दोनों के सितारे एक जैसे हैं