EN اردو
मियाँ चश्म-ए-जादू पे इतना घमंड | शाही शायरी
miyan chashm-e-jadu pe itna ghamanD

ग़ज़ल

मियाँ चश्म-ए-जादू पे इतना घमंड

इंशा अल्लाह ख़ान

;

मियाँ चश्म-ए-जादू पे इतना घमंड
ख़त-ओ-ख़ाल ओ गेसू पे इतना घमंड

अजी सर उठा कर इधर देखना
इसी चश्म ओ अबरू पे इतना घमंड

नसीम-ए-गुल इस ज़ुल्फ़ में हो तो आ
न कर अपनी ख़ुशबू पे इतना घमंड

शब-ए-मह में कहता है वो माह से
रकाबी से इस रू पे इतना घमंड

बस ऐ शम्अ कर फ़िक्र अपनी ज़रा
इन्ही चार आँसू पे इतना घमंड

अकड़ता है क्या देख देख आइना
हसीं गरचे है तू प इतना घमंड

वो कर पंजा 'इंशा' से बोले कि वाह
इसी ज़ोर-ए-बाज़ू पे इतना घमंड